नई दिल्ली, एम्स।(अवैस उस्मानी की रिपोर्ट): देश के प्रसिद्ध चिकित्सा संस्थान एम्स नई दिल्ली की ओर से 37वां राष्ट्रीय आंख दान पखवाड़ा शुरू किया जा रहा है। ये कार्यक्रम डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर अपथॉलमिक साइंसेज एम्स नई दिल्ली के नेशनल आई बैंक की ओर से आठ सितंबर से मनाया जायेगा। देश भर में इस पखवाड़े की शुरुआत हो रही है। नेशनल आई सेंटर हर साल इसतरह के पखवाड़े का आयोजन करतीहै। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली (एम्स) के डॉ.राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर अप्थलमिक साइंसेज के चीफ डॉ. जेएस तितियाल ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि इस पखवाड़े का उद्देश्य लोगों को आंखों के दान के बारे में जागरूक करना है ताकि जो लोग नेत्रहीन हैं, देख नहीं सकते हैं, उनकी इस बीमारी को दूर किया जा सके और उनको नई रोशनी मिल सके, जितने परिवारों ने अब तक आंखों का दान किया है, हम उन तमाम परिवार के परिजनों को आभार व्यक्त करते हैं।
डा.जेएस तितियालने कहा कि आंखों का दान सिर्फ खुद के लिए नहीं पूरे समाज के लिए एक बड़ा योगदान है। इस मुहिम में सरकारी और गैरसरकारी एनजीओ भी शामिल हैं। स्कूल के बच्चों को जागरूक करने का काम किया जाता है, ताकि उनको आंखों के दान के बारे में जागरूक किया जा सके, हमारी सरकार से गुहार है कि स्कूल की किताबों में आंखों और अंग के दान को लेकर एक चैप्टर को जोड़ा जाना चाहिए।
उन्होंने ये भी कहा कि देश में इस समय आंखों कॉर्निया से जुड़ी एक लाख सर्जरी की जरूरत है हम केवल 35 से 40 हज़ार सर्जरी ही कर पाते हैं। हर आदमी प्रतिज्ञा करके आंखों का दान मृत्यु के बाद कर सकता है,एक साल के बच्चे से लेकर 100 साल तक के बुजुर्ग अपनी आंखों के दानकर सकते हैं, एचआईवी, हेपेटाइटिस और रेबीज के कारण मृत्यु करनेवाले व्यक्ति अपनी आंखों का दान नहीं कर सकते हैं, अगर किसी को कोरोना हुआ हो और वह उसे ठीक हो गया हो और अपनी मृत्यु के बाद अगर वह आंख दान करना चाहता है तो उसकी आंखों का भी दान हो सकता है, अभी तक ऐसी कोई भी स्टडी नहीं है जिसमें कोरोनावायरस या उससे ठीक होने वाले व्यक्ति की आंख किसी दूसरे को लगाने पर उसको भी कोरोना वायरस हुआ हो, कोरोना से मृत्यु के बाद भी आंखों के टिश्यू कोलिया जाता था और उसको ट्रांसप्लांट किया जाता था, उससे किसी को कोरोना होने की कोई बात अभी तक सामने नहीं आई है।
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डॉ.जेएस तितियाल ने कहा कि हमारे पास सबसे बड़ी चुनौती सर्जरी वालेमरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है, लेकिन कॉर्निया की संख्या बहुत कम होती है हम चाहते हैं कि दिल्ली एनसीआर में जितने भी बड़े अस्पताल हैं वह हमारे साथ जुड़ जाएं। हमारी कैपेसिटी 5 से 6 हजार सर्जरी करने की है, लेकिन हम केवल हजार सर्जरी कर पाते हैं। क्योंकि डोनेशन बहुत कम है। एम्स में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में प्रोफेसर आरती विज और प्रोफेसर राधिका टंडन भी मौजूद रहीं।
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