नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को व्यवस्था दी कि दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के खिलाफ न तो चेक बाउंस का मामला शुरू किया जा सकता है और न ही इसे जारी रखा जा सकता है।
न्यायालय ने कहा कि ऐसी कंपनियों को दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के प्रावधान के तहत संरक्षण मिला हुआ है। इसके साथ ही न्यायालय ने इन कंपनियों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया पर रोक लगा दी।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने चेक बाउंस मामले में न्यायिक प्रक्रिया पर रोक का लाभ निदेशकों या चेक पर हस्ताक्षर करने वालों को नहीं दिया है। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में उनके खिलाफ आपराधिक मामला जारी रहेगा।
न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह कानूनी मुद्दा आया कि क्या नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138/141 (चेक बाउंस् मामला) के तहत प्रक्रिया जारी रखने को आईबीसी की धारा 14 के रोक के प्रावधान के तहत संरक्षण मिला हुआ है।
आईबीसी के तहत किसी कंपनी के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला प्रक्रिया शुरू होते ही उसे धारा 14 के तहत सांविधिक संरक्षण मिल जाता है। साथ ही उसके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया भी रुक जाती है।
पीठ में न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के एम जोसफ भी शामिल थे। पीठ ने बंबई और कलकत्ता उच्च न्यायालय के उन फैसलों पर असहमति जताई जिनमें यह व्यवस्था दी गई थी कि आईबीसी के तहत दिवाला प्रक्रिया वाली कंपनियों के खिलाफ चेक बाउंस का मामला जारी रखा जा सकता है।
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