Happy Mother’s Day: बिना कहे जो हर बात समझ ले वो है ‘मां’, क्यों मनाया जाता है यह दिन

हर व्यक्ति का अपनी मां के साथ रिश्ता बेहद गहरा और खास होता है। एक मां ही है जो अपने बच्चे के हर दुःख-तकलीफ को बिना उसके कहे समझ लेती है।

एक मां अपने बच्चे की आंखों में आंसू देख खुद भी रो पड़ती है। ऐसे में आज का दिन भी हर मां को समर्पित है और इस दिन आप अपनी मां से ये बयां करें की आप उनसे कितना प्यार करते हैं तो उनके लिए यह दिन और भी खास हो जाएगा।

9 मई को हर साल मदर्स डे मनाया जाता है। आज के दिन अपनी मां को स्पेशल फील करवाने के लिए आपको कुछ खास जरूर करना चाहिए।

मैंने भगवान नहीं देखा मां
पर, हर मुश्किल मोड़ पर
आपको ही पाया
मां कैसे करूं
आपका शुक्रिया
जो जीवन तुमने मुझे दिया।

मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मातृ दिवस मनाया जाता है। करीब 110 साल से यह परंपरा चल रही है। इस दिन की शुरुआत एना जार्विस ने की थी।

उन्होंने यह दिन अपनी मां को समर्पित किया और इसकी तारीख इस तरह चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आसपास ही पड़े।

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दरअसल, मदर्स डे की शुरुआत एना जार्विस की मां एन रीव्स जार्विस करना चाहती थीं। उनका मकसद मांओं के लिए एक ऐसे दिन की शुरुआत करना था, जिस दिन अतुलनीय सेवा के लिए मांओं को सम्मानित किया जाए।

हालांकि, 1905 में एन रीव्स जार्विस की मौत हो गई और उनका सपना पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी बेटी एना जार्विस ने उठा ली।

एना ने इस दिन की थीम में थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने कहा कि इस दिन लोग अपनी मां के त्याग को याद करें और उसकी सराहना करें।

लोगों को उनका यह विचार इतना पसंद आया कि इसे हाथों हाथ ले लिया गया और एन रीव्स के निधन के तीन साल बाद यानी 1908 में पहली बार मदर्स डे मनाया गया।

दुनिया में जब पहली बार मदर्स डे मनाया गया तो एना जार्विस एक तरह से इसकी पोस्टर गर्ल थीं। उन्होंने उस दिन अपनी मां के पसंदीदा सफेद कार्नेशन फूल महिलाओं को बांटे, जिन्हें चलन में ही ले लिया गया।

इन फूलों का व्यवसायीकरण इस कदर बढ़ा कि आने वाले वर्षों में मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की एक तरह से कालाबाजारी होने लगी।

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लोग ऊंचे से ऊंचे दामों पर इन्हें खरीदने की कोशिश करने लगे। यह देखकर एना भड़क गईं और उन्होंने इस दिन को खत्म करने की मुहिम शुरू कर दी।

मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की बिक्री के बाद टॉफी, चॉकलेट और तमाम तरह के गिफ्ट भी चलन में आने लगे। ऐसे में एना ने लोगों को फटकारा भी।

उन्होंने कहा कि लोगों ने अपने लालच के लिए बाजारीकरण करके इस दिन की अहमियत ही घटा दी। साल 1920 में तो उन्होंने लोगों से फूल न खरीदने की अपील भी की।

एना अपने आखिरी वक्त तक इस दिन को खत्म करने की मुहिम में लगी रहीं। उन्होंने इसके लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी और 1948 के आसपास एना इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

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