रायपुर(नीरज तिवारी): छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के रहने वाले एक आदिवासी झामसिंह की पिछले दिनों मध्यप्रदेश पुलिस ने नक्सली के संदेह में गोली मारकर हत्या कर दी थी, इसके बाद छत्तीसगढ़ के वनमंत्री मोहम्मद अकबर ने प्रदेश के राज्यपाल अनुसुईया उईके को हादसे की पूरी जानकारी देते हुए बताया कि झामसिंह स्थानीय निवासी है उसकी नक्सली के संदेह में मध्यप्रदेश पुलिस ने हत्या कर दी। इसके बाद प्रदेश के वनमंत्री ने दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र भी लिखा।
आज मध्यप्रदेश सरकार ने मृतक आदिवासी झामसिंह के परिजनों को एक लाख रुपए की सहायता और पुलिस ने सरकार से झामसिंग के एक परिजन को सरकारी नौकरी की सिफारिश की है। वहीं, वनमंत्री मोहम्मद अकबर की सक्रियता और राज्यपाल अनुसईया उईके के हस्तक्षेप के बाद मध्यप्रदेश पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा की है।
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उल्लेखनीय है कि 6 सितंबर को मप्र-छत्तीसगढ़ सीमा से लगे कवर्धा के निवासी झामसिंह की पुलिस गोली लगने से मौत हो गई थी। मप्र पुलिस ने इसे नक्सली मुठभेड़ कहा था लेकिन ग्राम वासियों के अनुसार वे निर्दोष थे व जंगल में मछली पकडऩे गए थे।
मामले की गंभीरता को देखते हुए वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने इस विषय में मप्र के मुख्यमंत्री व राज्यपाल को पत्र लिख इस मामले की जांच के लिए आग्रह किया था। मंत्री श्री अकबर ने इंसाफ दिलाने की पहल करते हुए एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह,गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को पत्र लिखकर जांच की मांग और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की थी।
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यही नहीं एमपी के सीएम को पत्र लिखने के बाद 24 घंटे के भीतर दूसरी बार पत्र लिखकर कार्रवाई के लिए संज्ञान लेने का आग्रह किया था, अगले दिन श्री अकबर ने छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसईया उईके से फोन पर बात कर उन्हें मामले से अवगत करवाते हुए हस्तक्षेप का आग्रह किया था।
बुधवार को एमपी पुलिस ने झामसिंह मामले में एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है। जब ये मामला सामने आय़ा था, तभी से कबीरधाम जिले के आदिवासी समुदाय ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के जनजातीय समूह में एमपी पुलिस के खिलाफ कड़ा आक्रोश व्याप्त था। झामसिंह के परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता अकबर ने दिखाई। नतीजन एक आदिवासी की फर्जी मुठभेड़ के संगीन मामले में एमपी पुलिस को कार्यवाही करनी पड़ी।
यह मामला मानवाधिकार हनन के आरोप से भी जुड़ा था, लिहाजा मानवाधिकारवादी संगठनों की नजर भी मामले पर थी। इस मामले का अपेक्षानुसार निपटारा होने से कबीरधाम जिले के आदिवासी समुदाय ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के समूचे आदिवासी समुदाय ने राहत की सांस ली है।