(अवैस उस्मानी): महिलाओं के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा सभी विवाहित और अविवाहित महिलाओं को गर्भपात के अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अविवाहित महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी रूल्स के नियम 3-B का विस्तार किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा सभी महिलाओं को सुरक्षित, क़ानून सम्मत तरीके से गर्भपात करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत पति द्वारा यौन हमले को मेरिटल रेप के अर्थ में शामिल किया जाना चाहिए। Is that abortion Safe,
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि लिव-इन रिलेशनशिप और सहमति से बने संबंधों से गर्भवती हुई महिलाएं भी गर्भपात करा सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया इस क़ानून की व्याख्या केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर बिना मर्जी के कोई विवाहित महिला गर्भवती होती है, तो इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप माना जाना चाहिए और इस लिहाज से उसे गर्भपात कराने का अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा MTP कानून में विवाहित और अविवाहित महिला के बीच का अंतर कृत्रिम और संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था किया कि पतियों के द्वारा किया गया महिला पर यौन हमला बलात्कार का रूप ले सकता है और बलात्कार की परिभाषा में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत वैवाहिक बलात्कार शामिल होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति, उसे अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा यहां तक कि एक एकल और अविवाहित महिला को भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत यह अधिकार है और उसे गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक नियमों के तहत गर्भपात का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा विवाहित महिला भी पीड़ितों की कटैगरी में आ सकती है, बलात्कार का मतलब है सहमति के बिना यौन संबंध बनाना, पति द्वारा यौन हिंसा एक वास्तविकता है, ऐसे मामले में भी महिला जबरदस्ती गर्भवती हो सकती है।
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सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि पतियों के द्वारा किया गया महिला पर यौन हमला बलात्कार का रूप ले सकता है और बलात्कार की परिभाषा में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत वैवाहिक बलात्कार शामिल होना चाहिए। दरअसल, एक अविवाहित महिला ने कोर्ट में 24 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी एक्ट 2021 में जो बदलाव किया गया है, उसके तहत एक्ट में महिला और उसके पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया गया है। वहां पार्टनर शब्द का इस्तेमाल है, न कि पति शब्द का ऐसे में एक्ट के दायरे में अविवाहित महिला भी आती हैं। पीठ 25 वर्षीय अविवाहित महिला द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें 24 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की गई थी, जो दिल्ली हाईकोर्ट के उक्त राहत देने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ सहमति के रिश्ते से उत्पन्न हुई थी। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि वह 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और उसके माता-पिता किसान हैं। उसने प्रस्तुत किया कि आजीविका के स्रोत के अभाव में वह बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण करने में असमर्थ होगी।
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