हरियाणा (रिपोर्ट- राजीव अरोरा) :
हरियाणा के किसानों की एक स्पेशल रिपोर्ट-
हरियाणा प्रदेश की मनोहर सरकार ने ऐलान किया था कि जो किसान धान की खेती छोड़कर अन्य खेती करेंगे उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी। प्रदेश सरकार धान से हटाकर किसी और फसल में ले जाना चाहती है ताकि भू जल की बचत हो, हरियाणा के किसानों का कहना है कि सरकार की नीति और योजना के तहत उन्होंने धान की खेती छोड़कर मक्के की खेती की जिसका उन्हें दाम भी नही मिल रहा है, इस साल मई में ऐलान किया था कि जो किसान धान के अलावा अन्य फसल उगाएंगे उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।
अब तक नही बिकी फसल-
अमरीक सिंह पंचायत की जमीन ठेके पर लेकर(किराए पर) खेती करते हैं । जिससे उसके घर का चूल्हा चौका चलता है। अमरीक सिंह पिछले 20 साल से पंचायती जमीन ठेके पर ले रहे हैं। हर साल अमरीक धान की खेती किया करते थे लेकिन इस बार सरकार की पाबंदी के बाद उन्होंने धान की जगह मक्के की खेती की। बारिश की वजह से मक्की की फसल बर्बाद हो गई। जिसके बाद उन्होंने दोबारा से मक्का बीजा।
अगर पूरा खर्चा लगाएं तो ₹20000 प्रति एकड़ मक्के के ऊपर पूरा खर्च आया। लेकिन अगर वह अब मक्के को बेचने जाते हैं तो उनकी लागत भी पूरी नहीं होती। सरकारी खरीद हो नहीं रही और प्राइवेट बेचने पर सही रेट मिल नहीं पाता। घर में इतनी जगह भी नहीं है कि वह अपनी फसल को स्टोर कर सकें। इसलिए गांव के सरपंच के घर उन्होंने अपनी फसल को रखा हुआ है। नवंबर के पहले सप्ताह में कटे हुए मक्के की फसल अब तक बिक नहीं पाई अमरीक सिंह अधिकारियों के चक्कर काटते रह गए।
गुरनाम सिंह को नही मिला फसल का पूरा खर्च-
किसान गुरनाम सिंह के पास अपनी जमीन नहीं है घर में तीन बेटे हैं तीनों दिहाड़ी मजदूरी करते हैं सभी मिलकर पंचायत की जमीन ठेके पर ले खेती करते हैं जिससे कि गुजारा हो सके। गुलाब सिंह भेज पिछले 10 साल से पंचायत की जमीन ठेके पर ले खेती कर रहे हैं गुरनाम सिंह ने भी सरकार की पाबंदी के बाद धान की खेती की जगह इस बार मक्की की खेती की।
गुरनाम सिंह का कहना है कि सरकार के द्वारा ₹7000 प्रत्येक कर देने की बात की गई थी जिसमें से सरकार को कुछ पैसा बिजाई के समय देना था और कुछ कटाई पर लेकिन सरकार के वादे सिर्फ खोखले दिखाई दिया। गुरनाम सिंह कहते हैं कि जितना खर्च फसल पर आया है अगर वह आज बेचने जाते हैं तो उन्हें पूरा खर्च भी नहीं मिल पाता ऐसे में वह अपने घर का गुजारा कैसे करें।
सरकारी खरीद हो नहीं रही और प्राइवेट फसल 1100 से 12 सो रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकती है जबकि फसल का सरकारी रेट 1800 प्रति क्विंटल है। यहां से यह भी पता चलता है कि प्राइवेट सेक्टर आने के बाद फसल के दामों में किस प्रकार की गिरावट होगी।
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