चंडीगढ़। (रिपोर्ट- अनिल गाबा) 22 साल की मजबूत दोस्ती के बाद अकाली दल-भाजपा गठबंधन का किला अब बेशक कृषि अध्यादेशों के नाम पर टूट गया हो, मगर इसकी नीव के खोखला होने के कई कारणों में से एक कारण हरियाणा में भी उपजा था। वर्ष 2019 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अकाली दल को विधान सभा चुनाव में सीटें देने से कोरा जवाब दे दिया था जिसके बाद अकाली दल ने पहली बार किसी चुनाव में सहयोगी पार्टी भाजपा के खिलाफ ताल ठोकी थी। अब भाजपा अकाली दल के रिश्ते टूटने का राजनैतिक असर हरियाणा में भी पड़ सकता है जहां अकाली दल या तो अकेले या फिर पुराने साथी इनेलो के साथ विकल्प तलाश सकता है।
भारतीय जनता पार्टी के साथ अकाली दल के नाता टूटने का अब कृषि बिल बेशक सबसे बड़े कारण बने हों मगर दोनों की दोस्ती का दशकों पुराना महल में हरियाणा विधान सभा चुनाव में ही दरारें आने शुरू हो गई थी। अकाली दल ने भाजपा से हरियाणा विधानसभा में सीटें मांगी मगर भाजपा द्वारा कोरा जवाब दिए जाने पर अकाली दल ने भाजपा के खिलाफ कालांवाली सीट से अपना उम्मीदवार भाजपा के खिलाफ खड़ा कर दिया था। कालांवाली सीट पंजाब के साथ लगती हरियाणा की विधान सभा सीट है और सिख वोट बैंक अधिक होने की वजह से अकाली दल ने पहले भी इस सीट पर जीत हासिल की थी। हालांकि इस बार अकाली दल को इस सीट से निराशा ही हाथ लगी थी मगर यह चुनाव भाजपा और अकाली दल के रिश्तों में खटास का एक बड़ा कारण जरूर बन गया था।
हालांकि विधान सभा चुनाव से ठीक पहले हुए लोकसभा चुनावो में अकाली दल ने भाजपा का हरियाणा में खुल कर साथ दिया था और भाजपा ने पहली बार लोक सभा की सभी दस सीटों पर जीत हासिल की थी। अकाली दल को तब उम्मीद थी कि विधान सभा चुनाव में भाजपा अकाली दल को कुछ सीटें जरूर देगी।
फिलहाल भाजपा से केन्द्र में नाता तोड़ने के बाद अकाली दल हरियाणा में भी भाजपा के खिलाफ अपनी राजनीति या तो अकेले या फिर इनेलो जैसे किसी पुराने साथी के साथ आगे बढ़ाने के विकल्प तलाश सकता है। फिलहाल अकाली दल के लिए इस वक्त फोकस बेशक पंजाब ही हो क्यूंकि हरियाणा से पहले पंजाब विधानसभा चुनाव होने हैं मगर ऐसी संभावना नहीं है कि भाजपा से नाता तोड़ने के बाद अकाली दल हरियाणा से भी मुँह मोड़ लेगा।