उत्तर भारत में प्रदूषण रोकने को लेकर अच्छी खबर है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं बहुत कम सामने आ रही हैं।
केंद्र सरकार राज्यों को मल्चर जैसे ऐसे कृषि यंत्रों के लिए मदद दे रही है, जिनसे पराली का खेत में ही प्रबंधन हो जाता है और इसे जलाना नहीं पड़ता है।
पंजाब में धान की कटाई को तीन हफ्ते हो चुके हैं। तीन अक्तूबर तक के आंकड़ों के अनुसार, इस साल 237 जगह पराली जलाई गई जो पिछले साल के आंकड़े 1045 से बहुत कम है। छह अक्तूबर तक 320 घटनाएं हुई जबकि पिछले साल 1533 घटनाएं हो चुकी थीं।
हरियाणा में तीन अक्तूबर तक 19 घटनाएं सामने आईं तो पिछले साल 289 हो चुकी थीं। पंजाब में अगर माझा के अमृतसर और तरनतारन जिलों में सबसे ज्यादा घटनाएं हो रही हैं तो हरियाणा में करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल में।
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राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल ने पराली जलाने से रोकने के आदेश दिए हुए हैं, किंतु साथ ही यह भी कहा कि किसानों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें मशीनरी खरीदने के लिए प्रेरित किया जाए।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उप्र में पराली जलाने के कारण जाड़ों में दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है। कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि अब किसान भी जागरूक होने लगे हैं।
किसान पिछले कुछ सालों में यह तजुर्बा कर चुका है कि जिन खेतों में धान की पराली नहीं जलाई जाती है, वहां गेहूं और अन्य अगली फसल की पैदावार बढ़ जाती है।
आग लगाने से उपजाऊपन घटता है। दूसरा, सरकार पराली जलाने से रोकने वाले कृषि यंत्र बड़े पैमाने पर दे रही है।
पंजाब में ही इस साल सितंबर में खरीफ की फसल की कटाई से पहले केंद्र से मिले 235 करोड़ रुपए से लगभग 31 हजार ऐसे कृषि यंत्र किसानों, किसान उत्पादक संगठनों, ग्राम सभाओं आदि को बांटे गए हैं।
पराली खेतों में जलाने से रोकने की योजना को क्रॉप रेज्डियू मैनेजमेंट यानी पराली प्रबंधन कहते हैं। इसके लिए केंद्र लगातार राज्यों को मदद कर रहा है, जिसमें से सबसे ज्यादा हिस्सा पंजाब को दिया जाता है।
पिछले तीन साल में पंजाब के किसानों को 810 करोड़ रुपए मिले हैं। तीन साल पहले प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप पर इस योजना में राज्यों को फंड देने का फैसला किया गया था।
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