बीच का रास्ता निकालने की दिशा में आगे बढ़ रही केंद्र सरकार

नई दिल्‍ली: (प्रदीप कुमार की रिपोर्ट)- तीनों नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों के तेवर को देखते हुए केंद्र सरकार कई विषयों पर विचार करते हुए बीच का रास्ता निकालने की दिशा में आगे बढ़ रही है। कानून सरकार भले वापस नहीं लेगी, लेकिन किसानों की जिद को देखते हुए कुछ पहलुओं पर नए उपाय करने की तैयारी में है। नए कानून से मंडियों को लेकर उपजी आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार व्यापारियों के रजिस्ट्रेशन की पहल करने की सोच रही है। इसके अलावा विवाद के सबसे बड़े बिंदु एमएसपी को लेकर भी सरकार किसान नेताओं को कोई बड़ा भरोसा दे सकती है।

 

इससे पहले किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा ने गुरुवार को चौथे दौर की बैठक के बाद दावा किया कि सरकार ने कानून में खामियों की बात मानी है और संशोधन की बात कही है। हमने सरकार के सामने कृषि कानून से जुड़ी सभी कमियों को सूचीबद्ध किया है। उन्हें मानना पड़ा कि इसमें कमियां हैं और वो संशोधन करेंगे। हालांकि, हमने कह दिया कि हम संशोधन नहीं चाहते हैं और इन कानूनों को वापस लिया जाना ही हमारी मांग है। एमएसपी पर भी हमने अपनी बात सरकार के सामने रखी है।

 

सरकार के कई मांगों पर नरम रुख के बावजूद किसान नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें संशोधन मंजूर नहीं है, बल्कि वे कानूनों का खात्मा चाहते हैं। किसान नेताओं ने तीन कृषि कानूनों के अलावा हाल में प्रदूषण पर मोटा जुर्माना और सजा वाले एक्ट को भी हटाने की मांग की है।

 

चौथे दौर की बैठक में किसान नेता नए कृषि कानूनों को रद्द करने पर जोर देते रहे। इस दौरान उन्होंने सरकार की तरफ से उपलब्ध दोपहर का भोजन, चाय और पानी लेने से भी इनकार कर दिया। विभिन्न किसान संगठनों के 40 नेताओं के साथ बैठक के दौरान सरकार ने अपनी ओर से उनकी सभी जायज़ चिंताओं पर ध्यान दिये जाने का आश्वासन दिया और कहा कि उनपर खुले दिमाग से विचार किया जायेगा।

 

संयुक्त किसान मोर्चा की मांगों के लिखित पांच-बिंदु सेट में प्रमुख मांगों में से एक संसद के मानसून सत्र के दौरान सितंबर में पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करना है। इसमें आगामी बिजली (संशोधन) अधिनियम, 2020 के बारे में भी आपत्तियां उठाई गई हैं।किसानों ने इस बात पर जोर दिया कि पराली जलाने के लिए मामला दर्ज करने का प्रावधान समाप्त किया जाना चाहिए। इसके अलावा किसानों ने सवाल उठाया कि सरकार आखिर क्यों एमएसपी पर उन्हें लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार नहीं है, जबकि उसने पहले कहा था कि एमएसपी हमेशा जारी रहेगा।किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने जोर देकर कहा कि संसद के एक विशेष सत्र में एमएसपी पर एक नया कानून बनाया जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि उन्हें एमएसपी की गारंटी दी जानी चाहिए, न केवल अब बल्कि भविष्य में भी यह गारंटी होनी चाहिए।किसान नेताओं ने चिंता जताते हुए कहा, “मान लें कि एमएसपी जारी रहे, लेकिन खरीद बंद हो जाए। तब तो एमएसपी का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा।

 

बहरहाल केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच चार दौर की वार्ता के बाद अब कल होने जा रही पांचवें दौर की वार्ता पर नज़रे टिकी है।

 

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