हरियाणा विधानसभा में सत्र के आखिरी दिन शुक्रवार को कुल सात विधेयक पारित किये गए। इन विधेयकों में संगठित अपराध सिंडिकेट या गैंग की आपराधिक गतिविधि के निवारण और नियंत्रण हेतु तथा उनसे निपटान और उनसे संबंधित या उनके आनुषंगिक मामलों के लिए विशेष उपबंध करने के लिए हरियाणा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक, 2020 पारित किया गया है।
हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा नगरपालिका (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 को भी पारित किया गया है। विधि एवं विधायी विभाग की अधिसूचना संख्या लैज. 34/2019 द्वारा हरियाणा नगर पालिका अधिनियम,1973 की सम्बन्धित धाराओं में नगर परिषद/नगर पालिका में प्रधान के पद का चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा करने का प्रावधान किया गया था। तदनुसार हरियाणा नगर पालिका निर्वाचन नियमावली, 1978 भी संशोधन की प्रक्रिया में हैं। हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा नगर निगम (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है। विधि एवं विधायी विभाग की अधिसूचना लैज.33/2018, 4 अक्तूबर, 2018 द्वारा हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की सम्बन्धित धाराओं में नगर निगम के महापौर के चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा करने का प्रावधान किया गया था। इसके बाद शहरी स्थानीय विभाग की अधिसूचना संख्या 2/10/2018-आर–ढ्ढढ्ढ द्वारा इस बारे हरियाणा नगर निगम निर्वाचन नियमावली,1994 में संशोधन करते हुए पांच नगर निगमों नामत: रोहतक, पानीपत, करनाल, यमुनानगर और हिसार में महापौर के चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा 16 दिसंबर, 2018 को करवाए गए। हरियाणा विधि अधिकारी (विनियोजन) अधिनियम, 2016 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा विधि अधिकारी (विनियोजन) संशोधन विधेयक, 2020 पारित किया गया है। हरियाणा के विधि अधिकारियों (विनियोजन) अधिनियम, 2016 को 14 सितंबर, 2016 को अधिसूचित किया गया था, ताकि पारदर्शी, निष्पक्ष तथा उद्देश्य से महाधिवक्ता, हरियाणा में विधि अधिकारियों की विनियोजन की व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से और इससे जुड़े मामलों के लिए या आकस्मिक रूप से जुड़े मामलों के उद्देश्य से किया गया था।
हरियाणा राज्यार्थ पंजाब भू राजस्व अधिनियम, 1887 को आगे संशोधित करने के लिए पंजाब भू–राजस्व (हरियाणा संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है। राजस्व न्यायालय में लम्बित विभाजन की कार्यवाही के त्वरित निस्तारण के लिए पंजाब भू–राजस्व अधिनियम,1887 में संशोधन किया गया है। यह अनुभव किया गया है कि राजस्व न्यायालयों में लम्बित विभाजन की कार्यवाही में बहुत अधिक समय लगता है क्योंकि इनके निपटान बारे कोई वैधानिक समय सीमा नहीं है। इसके परिणामस्वरूप भू–स्वामियों, विशेष रूप से ग्रामीण जनता को लम्बे समय तक मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, यह एक सामान्य प्रवृति है कि हिस्सेदारी में भूमि खरीद ली जाती है और उसके पश्चात बिक्री पत्र के आधार पर विशिष्ट खसरा नम्बरों में गिरदावरी अपने नाम करवा ली जाती है। इसके परिणामस्वरूप दीवानी एवं राजस्व न्यायालयों में बहुपक्षीय मुकदमेबाजी होती है। विभाजन में देरी के साथ–साथ मुकदमेबाजी को कम करने के लिए पंजाब भू–राजस्व अधिनियम, 1887 में संशोधन किया जाना जरूरी हो गया था। इससे सभी भू स्वामियों, विशेष रूप से किसानों को राहत मिलेगी और मुकदमेबाजी कम होने से कृषि दक्षता को बढ़ावा मिलेगा तथा समयबद्ध विभाजन सुनिश्चित होगा। अत: सार्वजनिक हित एवं उक्त स्थिति के मद्देनजर पंजाब भू–राजस्व अधिनियम, 1887 में धारा 111 व 118 के बाद धारा 111-ए व 118-ए को जोड़ा जाएगा।
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