नई दिल्ली, (विनय सिंह): मैरिटल रेप यानी शादी के बाद पत्नी से जबरन संबंध बनाना रेप है या नहीं? इस मामले पर आज यानी बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई की गई, लेकिन खंडपीठ के दोनों जजों के बीच सहमति नहीं बन पाई। दिल्ली हाई कोर्ट के जज इस मुद्दे पर एक मत नहीं थे, जिसकी वजह से अब इस मामले को तीन जजों की बेंच को सौंप दिया गया है। अब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया जाएगा, इसकी सुनवाई अब वहीं करेंगे।
दो जजों की खंडपीठ में नहीं बनी सहमति
आपको बता दें कि, इस मामले पर सुनवाई जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस हरिशंकर कर रहे थे। फैंसला सुनाते हुए जस्टिस शकधर ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध कहा और आईपीसी धारा 375 के अपवाद 2 को असंवैधानिक बताया। जबकि जस्टिस हरिशंकर इससे सहमत नहीं हुए और दोनों में मतभेद हो गया। जिसके बाद दोनों जजों ने कहा कि, यह मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट में चले।
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साल 2015 में मैरिटल रेप को लेकर दायर हुई याचिका
गौरतलब है कि, दिल्ली हाई कोर्ट में एक गैर सरकारी संगठन ने साल 2015 में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाए। एक महिला को अपने जिस्म पर पूरा अधिकार है और उसका पति भी उसकी मर्जी के बगैर इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता। मौजूदा कानून के मुताबिक मैरिटल रेप कोई अपराध नहीं है। इस याचिका की सुनवाई के दौरान कई याचिकाकर्ता इस मुकदमे में शामिल हो गए। कुछ ने मौजूदा कानून का विरोध किया तो कुछ ने इसका समर्थन किया।
पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने को माना जाए रेप
आपको बता दें कि, धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है कि, अगर पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक है, तो पति का उससे जबरन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है। इस प्रावधान को आरआईटी फाउंडेशन, आल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेंस एसोसिएशन खुशबू सैफी समेत कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी थी। उनका कहना था कि पत्नी की मर्जी के खिलाफ अगर पति जबरन शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे रेप माना जाना चाहिए।
दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा था?
बता दें कि, मैरिटल रेप के मामले में पहले तो केंद्र सरकार ने इसके लिए कानून की बनाए जाने की तरफदारी की थी, लेकिन बाद में यू टर्न लेते हुए इसमें बदलाव की वकालत की थी। हालांकि हाई कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 21 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। उस दौरान की सुनवाई में दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप के बारे में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि, विवाहित और अविवाहित महिलाओं के सम्मान में अंतर नहीं किया जा सकता है। कोई महिला विवाहित हो या ना हो उसे असहमति से बनाए जाने वाले यौन संबंध को ना कहने का अधिकार है। एक महिला, महिला ही होती है।