सावित्री बाई के जन्मदिवस पर विशेष अंक, महिलाएं अब तक शिक्षा से क्यों हैं वंचित ?

आज भारत की प्रथम महिला शिक्षिका का जन्म दिवस हैं जिसे लोग शिक्षक दिवस व फातिमा शेख के जन्मदिन के रुप में भी मना रहे हैं ये वो महिलाएं है  जिन्होनें महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी ताकि वह पढ़कर  भारत और अपने लिए एक बेहतर विकास का मार्ग निकाल सकें ।

 

सावित्री बाई और उनके साथ सबसे मजबूत  सहयोगी  और शिक्षिका  के रुप में  कार्य कर रही फातिमा शेख  ने करीब 175 वर्ष पूर्व समाज के दबे कुचले लोगो व खासकर स्त्रियों के लिए एक साथ काम किया ।

 

जहां एक तरफ महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोले जाने का  श्रेय ज्योतिबा फुले को दिया जाता है वही दूसरी तरफ सावित्री बाई और फातिमा शेख को पहली महिला शिक्षिका के तौर पर जाना जाता है जिन्होने समाज के कड़े विरोध के बावजूद दलित, वंचित तबकों और महिलाओं के लिए काम किया । सावित्री बाई फुले ने कवि, समाज सेविका और एक शिक्षिका के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया है ।

 

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सावित्री बाई का जन्म 1831 में पूणे के नएगांव में हुआ था और 10 वर्ष की उम्र में उनका विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हुआ जो उस वक्त 13 साल के थे । ज्योतिबा फुले ने सावित्री बाई को घर में ही शिक्षा दी और एक शिक्षिका के रुप में तैयार किया जिसके बाद उन्होंने एक आधुनिक स्त्री के रुप में 1848 में पहले स्कूल की स्थापना की और महिलाओं को शिक्षा देने का फैसला किया ।

 

इसके बाद वह ओर स्कूल खोलने में भी कामयाब रही । आगे चलकर वह  सत्यशोधक समाज की कार्यकर्ता बनी जिसमें उन्होने बिना  पंडित के व दहेजमुक्त विवाह करवाएं यह प्रक्रिया आज के पंजीकृत विवाह से मिलती जुलती है । उन्होने अपने बेटे का विवाह भी इसी पद्धति से किया था जो पहला अंर्तजातीय विवाह था ।

 

गौरतलब है कि 1857 में जब प्लेग महामारी फैल गई थी और सभी लोग इससे संक्रमित हो रहे थे, मर रहे थे । ऐसे उन्होने यशवंत की मदद से खेत में ही एक अस्पताल खोला जहां वह खुद लोगो के पास जाकर उनकी मदद करती थी हांलाकि वह जानती थी कि यह एक संक्रमित रोग है। प्लेग महामारी के कारण ही 10 मार्च 1897 में उनकी मृत्यु हो गई थी ।

 

आज का सवाल –

आज हमारे समाज में समय बदल गया है तो स्थिति भी बदल गई है लेकिन समस्या वही बनी हुई है , आज भी कई घर ऐसे हैं जहां महिलाओं को पढ़ाना जरुरी नही समझा जाता है कई घर हैं जहां महिलाओं को केवल शादी के लिए पढ़ाया जाता है कई घरों में अगर पढ़ाया जाता है तो वहां सीमाएं तय कर दी जाती है । आज भी हमारे समाज में अंर्तजातीय विवाह गलत माना जाता है ।

क्यों हमारे जहन में ये सवाल नही आता है कि इतनी महिलाओं को क्यों नही पढ़ाया जाता? क्यों हम बचाव करते हैं कि महिलाएं इतनी पढ़ी लिखी तो है ये सवाल नही उठना चाहिए या लड़को को भी  नही पढ़ाया जाता है सिर्फ महिलाओं की ही बात क्यों ।

हम इस पर विमर्श क्यों नही करते हैं कि महिलाएं अब तक शिक्षा से वंचित क्यों है ?

 

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