बिलाईगढ़, छत्तीसगढ़(राजू निराला): वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोग रोजगार नहीं मिलने के कारण आज भी जंगल के मिट्टियों में सोना की तलाश करते हैं। और इनसे होने वाले आमदनी से ही घर परिवार का भरण-पोषण कर अपना जीवन यापन करते हैं। दरसल हम बात कर रहें हैं सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला के अंतर्गत आने वाले गाँव बोडाडीह की। जहां के कुछ लोग बरसात के दिन में रोजगार नहीं मिलने के कारण आज भी जंगल के मिट्टियों में सोने की तलाश करते हैं। जहां ये लोग सुबह 8 बजे से ही जंगल में चले जाते है और फिर 5 घंटों तक कड़ी मेहनत कर सोना तलाशते है। Chhatishgarh news
इन लोंगों की माने तो लकड़ी के बने कठोले में जंगल कि मिट्टी को खोदकर डालते है फिर पानी में मिट्टी को साफ करते है। मिट्टी के साफ होते ही मिट्टी में शामिल सोने के छोटे-छोटे कंण कठोले में उभरने लगता है। उन सोने के छोटे-छोटे कंणों को पत्तों से बने दोने में डालकर घर ले जाते हैं। फिर पारा की मदद से इकठ्ठा कर सुहागा डालकर गला लेते हैं। ऐसा करने से सोन के छोटे-छोटे कंण इकठ्ठा होकर सोने का एक बड़ा कंण बन जाता है। जिन्हें ही मार्केट में बेचकर कुछ पैसों की कमाई कर लेते है।
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इन लोंगों ने आगे बताया कि सोना तलाशने के दौरान कभी-कभी 100 एमएल व रेत के कण सहित छोटे-छोटे कंणों जैसे मिल जाते है या फिर कभी-कभी खाली हाथ ही घर वापस जाना पड़ जाता है। इन सभी कणों को महीनों तक इकठ्ठा करने से सोन का बड़ा हिस्सा मिल जाता है जो लगभग 2000/- हजार रुपयों से लेकर 4000/- हजार रुपयों तक कि बन जाती हैं। इन्हीं पैसों से ही इनका घर-परिवार का भरण-पोषण सहित जीवन यापन करते हैं। इन लोंगों ने आगे बताया कि इस तरह का काम पहले इनके पूर्वज करते थे और आज स्वयं कर रहें हैं।
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