दिल्ली में कोरोना प्रोटोकाल का उड़ रहा मखौल, प्राइवेट वाहनों पर कोई रोक टोक नहीं

दिल्ली। (रिपोर्ट- विश्वजीत झा) कोरोना काल में एक तरफ जहां सरकार पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन करा रही है। तो वहीं प्राइवेट ट्रांसपोर्ट में सरकार के दावों की हवा निकल रही है। मजबूरी में ना सिर्फ लोग इन गाड़ियों में चलने को मजबूर हैं बल्कि किराया भी दोगुना तक देना पड़ रहा है। मगर ये सब ना तो डीडीएमए को नज़र आ रहा है और ना ट्रैफिक पुलिस को और ना ही दिल्ली सरकार को, सब इसको अनदेखा कर रहे हैं।

दिल्ली में कश्मीरी गेट बस अड्डे की सड़क जो सीलमपुर, शाहदरा, दिलशाद गार्डन की ओर जाती है। सड़क के पास देखेंगे कि किस तरह शेयरिंग ऑटो और आरटीवी सवारियों को लेने के लिए खड़ी है। एक एक ऑटो में 5 से 6 सवारी बैठ रही है। जबकि आरटीवी में भी लोग चिपक चिपक कर बैठे और खड़े भी नजर आए। जब कुछ आरटीवी और ऑटो वालों से बात करने की कोशिश की गई, तो कई आगे निकल कर आए गए और अपनी मजबूरी बताईं।

आपको बता दें, यह सब उस जगह पर हो रहा है जहां से दिल्ली के उपराज्यपाल जो कि डीडीएमए के प्रमुख भी हैं उनका निवास स्थान महज आधे किलोमीटर की दूरी पर है। कश्मीरी गेट बस अड्डे से जब आगे चलकर रिंग रोड की तरफ पहुंचो तो वहां भी प्राइवेट ट्रांसपोर्ट का आतंक साफ नजर आता है। दूसरे राज्यों से आए मजदूरों से थोड़ी दूरी के लिए भी कई गुना किराया मांगा जा रहा है।

कोरोना काल में दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की अनदेखी का आलम यहीं खत्म नहीं होता । आईएसबीटी कश्मीरी गेट से दूसरे राज्यों के लिए बसों की सेवा पूरी तरह बंद है। मगर प्राइवेट बसों में बैठकर आप पंजाब हरियाणा समेत किसी भी राज्य में जा सकते हैं। हालांकि इसके लिए ज्यादा किराया चुकाना होगा। कश्मीरी गेट बस अड्डे पर जहां ट्रैफिक पुलिस खड़ी होती है। वहीं दूसरे राज्यों के लिए प्राइवेट बस संचालक टिकट काटते नजर आते हैं।

इस खबर का तात्पर्य यह है कि कोरोना काल में जब एक तरफ सरकार पब्लिक ट्रांसपोर्ट में प्रोटोकॉल की बात करती है। बसों में सिर्फ 15 से 20 लोगों को बिठाने की अनुमति देती है। सफर के लिए लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। मेट्रो में सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन कराया जा रहा है। तो वहीं फिर ऑटो, ग्रामीण सेवा, इको, ई रिक्शा या आरटीवी में चिपक चिपक कर बैठने और खड़े होने वालों से क्या करोना संक्रमण का खतरा नहीं रहता। उससे भी बड़ा सवाल यह कि दिल्ली की सड़कों पर हफ्ते भर पहले तक मुस्तैदी से मास्क का चालान काटने वाली ट्रैफिक पुलिस और दिल्ली परिवहन विभाग के अधिकारी क्या सच में इससे अनभिज्ञ हैं या फिर इससे मुंह फेरे हुए हैं।

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