दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्राएं भी किसान आंदोलन के समर्थन में, कहा किसानों से है उनका वजूद

 किसान आंदोलन जो हर दिन अलग अलग रूप में नजर आ रहा है जिसमें  कई हजार पुरुष किसान बॉर्डर पर अपने हक के लिए खड़े हुए हैं  वहीं अब दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्राएं भी किसान आंदोलन के समर्थन में आई है जो पोस्टर बनाकर घरों में रहने वाली महिलाओं को मीडिया के माध्यम से घर से बाहर निकलने की अपील कर रही हैं ।  कुंडली बॉर्डर पर काफी ऐसी बेटियां हैं जो पोस्टर बना कर मीडिया के माध्यम से गांव देहात की महिलाओं से आंदोलन में शामिल होने की अपील  कर रही हैं।

पोस्टर के माध्यम से  आंदोलन में शामिल होने की की जा रही हैं अपील –

 किसान आंदोलन में पहुंची दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा का दर्द सामने आया और उन्होंने कहा कि गांव और देहात की सभी महिलाएं खेतों में पुरुष के बराबर काम करती हैं लेकिन उनको उनके बराबर का हक नहीं मिलता और उन्हें हमेशा कमतर आंका जाता है लेकिन महिलाएं हर क्षेत्र में बराबर के मैदान में उतरती हैं और किसान आंदोलन में भी अब बराबर में खड़ी होंगी हालांकि कुंडली बॉर्डर पर महिलाओं की संख्या काफी कम है लेकिन पोस्टर बनाकर  मीडिया के माध्यम से गांव देहात की महिलाओं को आंदोलन में शामिल होने की अपील की जा रही है।
छात्राओं का कहना है कि महिला भी किसान होती हैं लेकिन उनके बारे में  कोई बात नहीं करता गांव और देहात में पुरुष के बराबर ही महिला खेत में काम करती हैं इसलिए अब पोस्टर के माध्यम से उन सभी महिलाओं को  अपनी ताकत का अंदाजा बताया जा रहा है जिनमें लिखा है औरतें क्रांति करती हैं और तीन कानून की मांग करने का अधिकार भी महिलाओं को बराबर का है  उन्हें भी इस मैदान में आगे आना चाहिए ।

लेबर मजदूरों के हक में छात्राएं-

इसके अलावा  छात्राएं लेबर क्लास लोगों के बीच में भी जाकर उन्हें अपने हक की लड़ाई के लिए जागरूक कर रही हैं। छात्राओं के अनुसार
 मजदूरों से भी 12 से 18 घंटे काम करवाया जाता है और उनका शोषण किया जाता है लेकिन उनकी सुनने वाला और उनके हक को उठाने वाला कोई नहीं है । वहीं उन्होंने कहा कि यह लड़ाई छात्रों और किसानों से जुड़ी हुई लड़ाई है, स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन  किसानों के लिए खड़ी हुई है । महिलाओं को जागरूक करते हुए उन्होनें  कहा कि उनकी जगह केवल घरों में नहीं है बल्कि किसी भी हक की लड़ाई के लिए मैदान भी है।
 एक अन्य छात्रा ने कहा कि अभी तक पंजाब का इतिहास यह रहा है कि महिलाएं भी कई आंदोलन में हिस्सेदार रही हैं और तीन अध्यादेश कानून में महिलाओं की संख्या ज्यादा नहीं है लेकिन महिलाएं भी अब आगे आने लगी है।  उन्होंने कहा कि बहुत सारे लोगे स्टूडेंट का किसान आंदोलन में काम ना होना बताते हैं तो उनके लिए यही कहना है कि हम भी मजदूर किसान मजदूर की बेटियां हैं और हमारे माता-पिता मैदान में है तो हम भी और अपने हक के लिए मैदान में खड़े रहेंगे, आज हमला मजदूर किसानों पर है तो यह हमला शिक्षा पर भी पड़ सकता है, किसान मजदूर के साथ ही उनका वज़ूद है ।
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