भारतीय राजनीति के प्रतिष्ठित और सबसे विवादित नेताओं में से एक रहे राज्यसभा सांसद अमर सिंह का शनिवार को 64 वर्ष की उम्र में निधन हो गया । उनके निधन के मौके पर कई पुराने राजनीतिक किस्सों, उनकी बॉलीवुड से दोस्ती आदि चीजों की बात हुई। उन्हीं में से एक सबसे मशहूर किस्सा था अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के याराने का किस्सा। अगर आपको याद हो तो, मुलायम सिंह यादव ने एक बार कहा था कि हम ‘दो जिस्म एक जान’ हैं। दूसरा जिस्म यानी अमर सिंह।
एक वक्त था जब अमर सिंह मुलायम के बाद सबसे ताकतवर आदमी थे। पार्टी और सरकार में उनकी तूती बोलती थी। गुलजार साहब का वो गाना उन पर बिल्कुल ठीक बैठता था कि ‘जहां तेरे कदमों के कंवल खिला करते थे।।। हंसी तेरी सुन-सुन के फसल पका करती थी।’ वाकई उस वक्त समाजवाद की फसलें उनकी हंसी सुन-सुन के ही पकती थीं।
अमर सिंह की मुलायम सिंह और बच्चन परिवार से दोस्ती की दास्तां !
अमर सिंह मुलायम के लिए सियासी से लेकर घरेलू काम तक करते थे। अखिलेश यादव को एडमिशन कराने ऑस्ट्रेलिया लेकर जाने वाले अमर सिंह ही थे। उनकी शादी का दिल्ली और लखनऊ में रिसेप्शन भी उन्होंने ही कराया था। अखिलेश के रिसेप्शन में अमिताभ बच्चन ‘दीवार’ फिल्म के डायलॉग सुनाकर लोगों का मनोरंजन कर रहे थे। कहते हैं कि वो भी अमर सिंह के बुलावे पर ही आए थे। यही नहीं अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय का विवाह भी अमर सिंह के चलते ही सम्भव हो पाया था ।
अमर सिंह, मुलायम सिंह के लिए बहुत तरह के काम करते रहे । देसी समाजवादियों के बीच वो ग्लैमर लेकर आए। समाजवादी पार्टी और पार्टी के कार्यक्रमों में बॉलीवुड सितारों को लेकर आने वाले वही थे। बॉलीवुड का कोई ऐसा बड़ा स्टार नहीं होगा जिसे वो मुलायम के गांव में होने वाले सैफई उत्सव में ना ले गए हों। एक वक्त था जब वो अमिताभ बच्चन के साथ साये की तरह रहते थे। अमिताभ बच्चन से उन्होंने मुलायम सरकार के विज्ञापन करवाए जिसमें एक विज्ञापन बहुत मशहूर हुआ कि ‘यूपी में है दम क्योंकि अपराध है यहां कम।’
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यही नहीं, अमर सिंह बड़े कॉरपोरेट घरानों और मुलायम सिंह के बीच पुल का काम करते थे। राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी पार्टी के किसी भी बड़े नेता से मुलायम के लिए वही डील करते थे। वो इतना कुछ मुलायम के लिए करते थे कि मुलायम को लगता था कि अमर सिंह की हस्ती उनसे ज्यादा बड़ी है। एक बार कुछ न्यूज चैनल के पत्रकारों से नाराज मुलायम ने कहा था कि, ‘तुम लोग क्या समझते हो। मैं अभी दिल्ली जा रहा हूं, अगर अमर सिंह कह देंगे तो एक दर्जन टीवी वाले मुझसे बात करने एयरपोर्ट पहुंच जाएंगे।’
डूबती यूपीए सरकार को अमर सिंह ने बचाया
यह अमर सिंह की प्रवंधन कला ही थी कि जो उन्होंने मनमोहन सिंह की डूब रही यूपीए 1 सरकार बचा ली। संकटमोचन अमर सिंह एक साथ कांग्रेस को संकट से उबारते रहे वही अम्बानी बंधुओं के बीच छिडी जंग में पंच की भूमिका में प्रधान मंत्री को लाने का कौशल भी उन्होंने ही दिखाया।बड़े से बड़ा आईएएस हो या कोई भी बड़ा बिजनस प्रमुख सब अमर सिंह के यंहा हाजिरी बजाते थे। अमर सिंह की हैसियत को कई लोग कोसते थे लेकिन उन्हें सियासत में इस एथिक्स को समझाना चाहिये कि राजनीती में कोई किसी का दोस्त और किसीका दुश्मन नही होता । यही अमर सिंह का मूल मंत्र था। यानि सत्ता के खेल में पूंजी की भूमिका को नजरंदाज नही किया जा सकता ।
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ऐसा नही है कि सत्ता के खेल में कारपोरेट कि भूमिका पहले नही रही है , लेकिन अमर सिंह ने इसे एक संस्था का रूप दिया है। लोकतंत्र में अमर सिंह के बारे में यह यह पूछा जा सकता है कि जिसने आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा वो आम लोगों के नेतृत्व कि बात कैसे कर सकता है । लेकिन आज कोई भी पार्टी इन पी आर लीडर के बगैर चल नहीं सकती । बी जे पी के अरुण जेटली कभी चुनाव नहीं लड़ा , लेकिन सरकार मध्य प्रदेश में आए या गुजरात में आए या कर्नाटका मे श्रेय अरुण जेटली को दिया जाता रहा । राजीव शुक्ला साप्ताहिक स्तम्भ लिखकर या टीवी चैनल चला कांग्रेस के जनाधार बढ़ाने का दावा करते थे। ठीक इसी तर्ज पर प्रेमचंद गुप्ता लालू प्रसाद यादव को कारपोरेट संस्कृति में ढालते रहे। लेकिन इन सबके ऊपर अमर सिंह ही रहे।
अम्बानी से लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को जिसने उपकृत किया हो , वो निश्चित रूप से इस देश का सबसे बड़ा पी आर लीडर कहा जाना चाहिए। अमर सिंह निश्चित रूप से इस देश के सबसे विवादास्पद और सबसे बड़े पी आर राजनीतिज्ञ रहे हैं। उन्हीं अमर सिंह ने लंबे समय से किडनी की बीमारी के चलते शनिवार दोपहर सिंगापुर के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली।