दिल्ली मेट्रो के विस्तार का खामियाजा कैसे चुका रही है यमुना नदी ?

दिल्ली में मेट्रो का विस्तार लगातर हो रहा है। इस विस्तार के साथ मेट्रो दिल्ली की सरहदों को पार कर यूपी , गुरुग्राम ,हरियाणा तक पहुंच रही है। मेट्रो के इस विस्तार से एक ओर जहां लोगो को सुविधा के साथ आराम मिल रहा है। तो वहीं दूसरी ओर इसकी कीमत  दिल्ली में एक मात्र बहने वाली युमना नदी को चुकाना पड़ रहा है। दिल्ली में युमना के 22 किलोमीटर के सफर में 11 पुल ट्रैफिक ओर ट्रेन के लिए जबकि चार पुल मेट्रो के आवागमन के लिये बन चुके हैं। मेट्रो ने चौथे फेज के लिए यमुना पर पांचवे पुल की नींव रख दी।
कोरोना काल में भले ही मेट्रो के पहिये रुके हो और मेट्रो को लोन का ब्याज देने के लिए सरकारों  का मुंह देखना पड़ रहा हो। लेकिन इन सबके बीच मेट्रो अपने चौथे फेज के लिए आगे बढ़ रही है। मेट्रो ने चौथे फेज के लिए मजीलिस पार्क से लेकर मौज पुर कॉरिडोर के लिए यमुना पर 560 मीटर पांचवे पुल की शुरुआत कर दी। हालांकि इससे इससे पहले भी मेट्रो यमुना पर चार पुल बना चुका है।

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दिल्ली में यमुना पल्ला गांव से ओखल बैराज के बीच 22 किलोमीटर का सफर तय करती है ।यमुना नदी के इस 22 किलोमीटर के सफर में अग्रेजो के बनाये 1863 में 804 मीटर वाले 4 लेन के  डबल डेक ट्रस ब्रिज जिसे आज लोहे के पुल से पहचाना जाता है। इसके  समेत 10 ओर पुल यमुना नदी पर  यातायात के लिए बने हुए। जबकिं एक पुल पिछले कई सालों निर्माणधिन है। जो प्राकृतिक तरीके से यमुना नदी को बहने में रुकावटें खड़ा कर रहे है।

पर्यावरण एक्सपर्ट की क्या है राय ?

पर्यावरणविद का मानना है कि बदलते वक्त के साथ विकास जरूरी है लेकिन इस विकास की आड़ में योजना बनाने वाले प्राकृतिक से खिलवाड़ कर रहे है। इनका कहना है कि योजना बनाते हमे नदियों की धारा का भी ध्यान रखना चाहिए। जिससे अगर कभी नदी में बाढ़ आये तो जान माल का नुकसान ना हो। लोगो के सफर को आरामदायक बनाने के नाम पर सरकार नदी से लेकर सडको पर एक के बाद एक पुल का निर्माण करवाने में लगी है। ना लोगो को जाम से निजात मिल पाई। और ना ही नदी अपने अस्तित्व में बह पा रही है।

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