सोनीपत से बेबीकॉर्न की खेती से अंतरराष्ट्रीय पहचान कायम करने वाले कवल सिंह चौहान ने न केवल अपने गांव में बल्कि आसपास के काफी गांव में बेबीकॉन और स्वीट कॉर्न की खेती के लिए किसानों में जागरूकता लाई, बेबी कॉर्न की खेती में कमाल करने के कारण ही कवल सिंह चौहान पदम श्री अवार्ड से नवाजे गए थे, लेकिन एक तरफ जहां कोरोना के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में किसानों की सब्जियां बंद हुई तो दूसरी तरफ 1 साल से ज्यादा के समय चलने वाले किसान आंदोलन ने बेबी कॉर्न की खेती करने वाले 10 गांव के किसानों के रोजगार पर काफी असर डाला और हालात ऐसे हुए की प्रतिदिन 2 टन बेबी कॉर्न अंतरराष्ट्रीय बाजार में भेजी जाती थी।
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जिसकी कीमत ₹120 किलो के हिसाब से करीबन ₹240000 बनती थी और इस कीमत से प्रत्येक किसान के घर अच्छी आमदनी होती थी, लेकिन किसान आंदोलन के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार इंग्लैंड समेत कई देशों में समय पर बेबी कॉर्न की फसल नहीं भेजी गई, जिसके कारण किसानों को प्रतिदिन लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है।
गौरतलब है कि सोनीपत समेत काफी गांव में लगभग 1000 एकड़ में 300 से ज्यादा किसान बेबी कॉर्न की खेती पर निर्भर है और अपना ज्यादा से ज्यादा समय इसी खेती में लगाते हैं क्योंकि इस खेती से किसानों को आवश्यकता से अधिक मुनाफा होता है और इस फसल का निर्यात इंग्लैंड जैसे प्रतिष्ठित और समृद्ध देश में होता है। कोविड काल में भी 2 टन का निर्यात बंद हो गया था, विशेष रूप से बेबीकॉर्न की फसल किसान गांव अटेरना,मनोली ,जेनपुर और आसपास के 10 गांव में पैदा होता है और विदेशों के बाजार में भेजा जाता है ।
बेबी कॉर्न की खेती से न केवल किसानों को मुनाफा हो रहा है बल्कि आसपास के स्थानीय लोगों को भी काम मिल रहा है और वही पैकिंग प्रोसेस के माध्यम से काफी लोग और महिलाएं काम कर रही हैं जिससे उनके घर की भी आमदनी हो रही है, लेकिन आंदोलन के कारण किसानों की गाड़ियों को यहां रोक लिया गया है जिससे उनको भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
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आवागमन बहुत कम रहा है अब यहां के किसानों को भारी नुकसान हुआ है, क्योंकि स्थानीय मंडी में इतना भाव नहीं मिल पाता इसलिए विदेशों में भेजा जा रहा था, वहीं किसान जनेन्द्र चौहान ने बताया कि किसान आंदोलन के चलते बेबी कॉर्न एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहा था लेकिन अब रास्ते खुल गए हैं अब उम्मीद जताई जा रही है कि एक बार फिर किसानों की फसल अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंचेगी और किसानों को फायदा होगा।
वही उन्होंने बताया कि सभी गांव की फसल को इकट्ठा करके packing process के माध्यम से विदेशों में भेजा जाता है वही किसानों ने स्थानीय रास्तों को ठीक करने के लिए प्रशासन से भी उम्मीद रखी हुई है ताकि आने जाने में दिक्कत ना उठानी पड़े वहीं उन्होंने कहा कि 1997 से उनके पिताजी ने बेबी कॉर्न की खेती करनी शुरू की थी उसके बाद उनके गांव समेत काफी गांव में या खेती की जा रही है छोटे किसानों के बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं क्योंकि वे बेबी कॉर्न की खेती से अच्छा पैसा और मुनाफा कमा रहे हैं वहीं उन्होंने कहा कि खेती को बिजनेस के रूप में अपनाने से किसान आगे बढ़ेगा और खूब पैसा कम आएगा।