बिहार के पूर्व मंत्री श्याम रजक ने आंकडे प्रस्तुत करते हुए बिहार की बदहाल शिक्षा स्थिति की खोली पोल

बिहार। देश में बिहार की सियासत भी इस समय गरमाई हुई है। हाल ही में जनता दल यूनाइटेड से निकाले गए बिहार सरकार में उद्योग मंत्री रहे श्याम रजक ने राष्ट्रीय जनता दल में शामिल होने के बाद अब बिहार की नीतीश कुमार सरकार पर हमले शुरू कर दिए हैं। आज उन्होंने कुछ आंकडे प्रस्तुत करते हुए बिहार की बदहाल शिक्षा स्थिति की पोल खोली है।

आपको बता दें, जनता दल यूनाइटेड से नाता टूटने के बाद और राष्ट्रीय जनता दल में शामिल होने पर श्याम रजक ने कहा था कि बिहार में 99 फीसदी लोग नीतीश कुमार सरकार से नाराज, इसलिए मैं आरजेडी में शामिल हो रहा हूं। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि जेडीयू में मैं उपेक्षित महसूस कर रहा था।

बिहार के पूर्व मंत्री श्याम रजक ने कुछ आंकडे प्रस्तुत करते हुए बिहार की बदहाल शिक्षा स्थिति की पोल खोल दी है। उन्होंने कहा कि सरकार बड़ी-बड़ी बातें करती है परंतु धरातल पर स्थिति बहुत ही दयनीय है। पूरे देश मे बिहार की साक्षरता दर सबसे कम 61.8 फीसदी है साथ ही बिहार में SC वर्ग की साक्षरता दर सबसे कम 48 फीसदी है। बिहार में 10वीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्रॉऑउट) छात्र-छात्राओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। दसवीं तक ड्रॉप ऑउट बच्चों की संख्या कुल छात्र-छात्राओं के तकरीबन 48 फीसदी तथा अनुसूचित जाति के बच्चों उससे भी अधिक 58 फीसदी है। यह देश के किसी भी राज्य के ड्रॉप आउट स्तर से ज्यादा है। साथ ही स्नातक मे केवल 9.3 फीसदी अनुसूचित जाति के बच्चे ही दाखिला ले पाते हैं। अगर सरकार सच में शिक्षा पर इतना काम कर रही है तो प्रदेश में ऐसी स्थिति क्यों है।

इसके साथ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर श्याम रजक ने कहा नई शिक्षा नीति निजी शिक्षा को बढ़ावा देने वाली है। नई शिक्षा नीति की आड़ में सरकार शिक्षा का निजीकरण, बाजारीकरण करके अपने निजी एजेंडे को साधने का प्रयास कर रही है। जिससे इस देश की 70 फीसदी आबादी बुरी तरह प्रभावित होगी। इसमें गरीब, दलित व पिछड़े शामिल हैं। यह उनके बच्चों को उच्च शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, प्रौद्योगिकी शिक्षा और प्रोफेशनल शिक्षा से वंचित रखने की एक साजिश है।

जेडीयू के मंत्रियों द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस के जवाब में उन्होंने कहा कि दलित को दो बार विधानसभा अध्यक्ष बनाकर नीतीश कुमार जी ने कोई कृपा नहीं कि बल्कि केवल रबर स्टाम्प कि भांति इस्तेमाल किया है। दलितों को मुखिया तो बनाया गया पर अफसरशाही को बढ़ावा देकर उनकी शक्तियों को छीन लिया गया है। अनुसूचित जाति/जनजाति आवासीय विद्यालयों की क्या स्थिति है यह उन्हें जिलों मे जाकर देखना चाहिए। केवल कागजी आंकडे देखने से काम नहीं चलेगा। यूपीएससी/बीपीएससी प्रारम्भिक परीक्षा पास करने पर प्रोत्साहन राशि देने की बात हो रही है पर वो यह क्यों नहीं बताते की कितने लोगों को इसका लाभ मिला।

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