कोरोना वैक्सीन के लिए वैज्ञानिक किस तरह उठा रहे हैं जोखिम

देशभर में कोरोना का संक्रमण कम होने का नाम नहीं ले रहा है ।वहीं कोरोना महामारी के चलते रूस के 69 वर्षीय प्रोफेसर डॉ. अलेक्जेंडर चेपर्नोव ने लोगो को कोरोना से बचाने के लिए  खुद को दोबारा संक्रमित करने का जोखिम उठाया है जो  इंस्टीट्यूट ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं। वे   पहले फरवरी में संक्रमित हो गए थे, इस घटना का उन्होंने वैज्ञानिक परीक्षण में उपयोग किया ताकि हर्ड इम्युनिटी की संभावना का पता लगाया जा सके। साथ ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी ट्रायल टीके का पहला परीक्षण खुद पर किया ।

डॉ. अलेक्जेंडर ने  अपने शरीर की जांच में पाया था  कि उन्हें पहली बार संक्रमित होने के तीन महीने बाद ही उनके शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी घटने लगी थीं लेकिन  छठे महीने में वे पूरी तरह नष्ट हो गईं। फिर उन्होंने खुद बिना मास्क लगाए पॉजिटिव मरीजों के संपर्क में आना शुरू कर दिया और उन्होंने पाया कि कुछ दिनों में ही वे दोबारा संक्रमित हो गए।

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इस बार उन्हें अस्पताल में इलाज कराने तक की नौबत आ गई। इस प्रयोग से उन्होंने पाया कि शरीर में एंटीबॉडीज बहुत तेजी से नष्ट होती हैं इसलिए किसी बड़े समूह में प्रतिरक्षा पैदा करना संभव नहीं है।

सबसे पहले चीन ने उठाया था जोखिम

चीन के तिआनजिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हुआंग जिनाई ने फरवरी में कोविड-19 का टीका बनाने के लिए अपनी जान को जोखिम में डाला। उन्होंने जानवरों पर परीक्षण किए जाने से पहले  ही एक ट्रायल टीके की चार खुराक का परीक्षण खुद पर किया था। 

 

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